अदित्य की उंगलियाँ अब भी उस दीवार पर थीं, जो जल रही थी… पर जलकर राख नहीं हो रही थी।उसने जल्दी से हाथ खींच लिया।“ये... क्या था?”पीछे से अचानक किसी के पायल की आवाज़ आई।"इतनी रात को अकेले क्या कर रहे हो?"रूहाना की आवाज़ थी।अदित्य ने पलटकर देखा—वो वहीं खड़ी थी, आंखों में हल्का काजल लगा था, बाल खुले, और उसकी साड़ी… उसी लाल रंग की जो दीवार पर लिखावट के पास झूल रही थी।“तुम यहां क्या कर रही हो?” अदित्य ने पूछा।“वही जो तुम कर रहे हो… तलाश।”उसने मुस्कुरा कर आंखों में झांका।“मैं जवाब ढूंढ रहा हूं।”“और मैं सवाल।”रूहाना