चिट्ठियां

सोनपुर गाँव की सुबहें अक्सर शांति से भरी होती थीं। मंदिर की घंटियाँ, कोयल की कूक, और मिट्टी से आती सोंधी-सोंधी खुशबू—सब मिलकर जैसे किसी पुराने गीत की धुन रचते। वहीं एक पुराना स्कूल था, जहाँ खपरैल की छतें हर बरसात में टपकती थीं, और बच्चे धूल में खेलते हुए ज़िंदगी सीखते थे।उसी स्कूल के पिछवाड़े, आम के पेड़ के नीचे अक्सर एक लड़का बैठा दिखाई देता था। उसकी आँखों में कुछ अलग था—जैसे वो हर चीज़ को देखने से ज़्यादा महसूस करता हो। उसका नाम था आरव। लुहार के बेटे को कोई बहुत गंभीरता से नहीं लेता था, लेकिन