काठगोदाम की गर्मियाँ - 4

पहली बार वो घर आई(उपन्यास: काठगोदाम की गर्मियाँ | लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट)शादी के तीन दिन पहले घर का माहौल जैसे पूरी तरह बदल चुका था । दीवारों पर हल्दी के छींटे, आँगन में रंगोली, और कमरों में ढोलक की थाप… सब कुछ जैसे किसी खूबसूरत इंतज़ार का इशारा कर रहा था। शादी की तैयारियाँ पूरे शबाब पर थीं।रोहन बरामदे में खड़ा था, हाथ में लिस्ट, आँखों में थोड़ी थकान। तभी एक हल्की सी आवाज़ आई —“भैया, कोई लड़की मिलने आई है… नाम कनिका है।”वो एक पल को रुक गया। फिर धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरते हुए दरवाज़े तक आया।कनिका सामने खड़ी