श्री बप्पा रावल - 4 - कालभोजादित्य रावल (बप्पा रावल)

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तृतीय अध्यायकालभोजादित्य रावलकुछ दिनों की यात्रा के उपरान्त कालभोज (बप्पा रावल) नागदा ग्राम की सीमा पर आया। भीलों के कारवां के साथ चलते हुए अकस्मात ही उसने अपने अश्व की धुरा खींच उसे रोककर बाकि भीलों से कहा, “आप लोग चलिए मैं आता हूँ।”भीलों ने गाँव के भीतर प्रवेश किया। वहीं कालभोज ने अपना अश्व दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ कोस दूर चल वो एक नदी के पास रुका। अपने अश्व से उतरकर वो तट पर पहुँचा और अपने सर पर रखा शिरस्त्राण उठाए उसके भीतर देखा। उसके भीतर चंदन की एक डिबिया यूँ गुदी हुई थी मानों वो