गुफा में सन्नाटा पसरा हुआ था। भेड़ियों का झुंड जा चुका था, अपने पीछे सिर्फ़ बर्बादी और मार्कस का बेजान शरीर छोड़ गया था। हवा में अब भी खून की तेज़ गंध घुली हुई थी, लेकिन अचानक, एक अजीब सी ऊर्जा गुफा के भीतर उमड़ने लगी। मार्कस का खून, जो गुफा के फ़र्श पर बिखरा हुआ था, धीरे-धीरे अपने आप बहने लगा। वह किसी अदृश्य शक्ति द्वारा खींचा जा रहा था, और एकथी-दूसरे से मिलकर एक बड़े, चमकते हुए गोल घेरे का रूप ले रहा था। यह घेरा धीरे-धीरे गहरा लाल होता जा रहा था, मानो उसमें एक जीवन धड़क