अनकही दास्तां (शानवी अनंत) - 3

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"जब पहली बार एहसास चेहरे से टकराते हैं...."दिल की धड़कनें तेज़ थीं।दिल्ली की ठंडी शाम, लेकिन मेरी हथेलियां पसीने से भीगी हुई थीं।आज का दिन बहुत खास था।मैंने फैसला किया था ..शानवी से मिलने का।हम महीनों से एक दूसरे से जुड़ते आ रहे थे.… शब्दों के ज़रिए, खामोशियों के ज़रिए।लेकिन आज मैं पहली बारउसकी आंखों में देखना चाहता था,जिन्हें देखकर मैंने प्यार किया था।मैंने एक कॉफी कैफ़े चुना, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास —न ज्यादा भीड़, न ज्यादा सन्नाटा।बस उतनी जगह जहां मैं उसके सामने बैठकरवो कविता पढ़ सकूं जो मैंने सिर्फ उसके लिए लिखी थी।जो बाते मै उसे बोल नहीं