वो चिट्ठी जो कभी खोली नहीं गई

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रिमझिम रिमझिम बारिश हो रही हैं| बारिश की बूंदे खिड़कियों से टकरा रही है | बीती हुई यादे दरवाजा खटखटा रही हैं| प्रेम, खामोशी से उस बंद कमरे की चौखट पर बैठा था, जहाँ अब केवल सन्नाट था इस कमरे में एक वक़्त शिवानी की हँसी गूंजती थी।आज उसी हँसी की जगह, दीवारों में कैद आहें थीं।शिवानी सात साल पहले अचानक लापता हो गई थी।कोई चिट्ठी नहीं, कोई अलविदा नहीं।बस एक शाम, जब सूरज डूबा… वो भी डूब गई…राघव की ज़िंदगी से, और इस दुनिया से भी शायद।पुलिस ने उसे ‘गुमशुदा’ कहा,लोगों ने उसे ‘भागी हुई’ कहा,पर राघव ने कभी ‘मरा हुआ’