प्रेम के दो अध्याय - भाग 2

प्रेम के दो अध्याय अध्याय -1 भाग- 2 बाहर आकर मैं बागवानी में टहलने लगा। वहां की फिजा में महक थी, ताज़गी थी, उत्साह था और उस सुनहरी धूप का कुछ अंश भी था जो बादलों को चिर कर उन फूलों पर बरस रही थी। और वहाँ लगे फूल मेरे परिचित थे, लेकिन कुछ नए फूल अपरिचित भी थे। वह फूल जैसे पुराने फूलों में घुल-मिल-से गए हो लेकिन उनकीं महक में एक ताज़गी थी और एक नयापन था। मैंने फूलों के नजदीक जाकर एक गहरी सांस ली और वहाँ बिखरा सुकून मैंने सांसो के साथ अपने भितर समेट लिया। और वहीं