वो सुबह अलग थी। आसमान में अजीब सी चीखें गूंज रही थीं। मोबाइल नेटवर्क गायब था, टीवी पर "सिग्नल लॉस्ट" लिखा था, और बाहर गली में जो सन्नाटा था, वह किसी तूफान से पहले की शांति नहीं, तबाही के बाद की चुप्पी थी।मैंने खिड़की से झांक कर देखा — और पहली बार वो "शुतुरमुर्ग जैसे दिखने वाला राक्षसी पक्षी" दिखा। उसकी ऊंचाई करीब सात फीट रही होगी, आंखों से नीली आग निकल रही थी, और चोंच में लहू टपक रहा था।वो इंसानों को मार नहीं रहा था, नोच-नोच कर खा रहा था। चीखें गूंज रही थीं, और मैं उस वक़्त