वो युग था जब सत्य, धर्म और करुणा, केवल ग्रंथों में रह गए थे।धरती पर अराजकता का नंगा नृत्य चल रहा था। मनुष्य का मन कुत्सित हो चला था। पशुता, लालच, वासना और झूठ ने देवों के बनाए संतुलन को चूर कर दिया था। इस कलियुग में जन्म लिया था एक राक्षसी आत्मा — कली।कली, कोई साधारण असुर नहीं था। वह अंधकार का अवतार था। वह जहाँ जाता, वहाँ मनुष्यों में द्वेष, शोषण, लालच, और क्रूरता भर जाती। उसकी एक दृष्टि से हज़ारों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती। उसने न सिर्फ इंसानों को, बल्कि प्रकृति को भी अपने अधीन कर