ज़ब संस्कृति भाषा का प्रचलन भारत में जन भाषा के रूप में समाप्त हो चुका था और हिंदी भाषा साहित्य भाषा संस्कृति के विकृत स्वरूप से निकल कर भारतीय जनमानस कि संवाद संचार के भाषा के रूप में अस्तित्व पा रही थी जो भारतीय क्षेत्रीय भषाओ एवं संस्कृति एवं गुलाम संस्कृति कि भाषाओ कि मिली जुली अक्षर शब्द भाषा साहित्य का मूर्त स्वरूप प्राप्त कर रही थी इसी काल खण्ड में भक्त अपने आराध्य के लिए उनके विराटता के लिए अपनी सरल समझ एवं स्वीकारोक्ति कि अभिव्यक्ति संवाद - संचार का शसक्त मध्यम बनी जो वर्तमान में आर्याब्रत भारत कि बहुसंख्यक