पहली रात की सुहागरात - भाग 3

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अदित्य ने पलटकर छत के कोने में झाँका, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था।बस दीवार पर हवा से हिलती बेलें, और रात की हल्की ठंडी सरसराहट।"मैंने... कुछ देखा?"उसने खुद से सवाल किया, फिर सिर झटकते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ गया।नीचे पहुंचा तो ठाकुर बैठक में अकेले बैठा बीड़ी सुलगा रहा था।“नींद नहीं आ रही?” अदित्य ने पूछा।“जिस घर में बेटा जिंदा आया हो और सुबह दिल के बिना मिला हो... वहां नींद नहीं, सिर्फ सवाल आते हैं।”अदित्य पास बैठ गया।“आपने कभी गौर किया… कि इन चारों मौतों में एक बात कॉमन है?”ठाकुर ने थूक निगला — “कहना चाहते हो, औरत