काठगोदाम की गर्मियाँ - 2

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नए शहर, पुराने सवाललेखक- धीरेंद्र सिंह बिष्टकभी-कभी शहर बदलने से ज़िंदगी नहीं बदलती, सिर्फ़ खिड़की के बाहर का दृश्य बदल जाता है।कर्णिका के लिए काठगोदाम सिर्फ़ एक नया पता नहीं था—यह एक ऐसी जगह थी जहाँ वो पुराने रिश्तों के जवाब ढूँढना चाहती थी।दिल्ली की सुबहें तेज़ होती हैं—एलार्म की आवाज़, ट्रैफिक का शोर और लोगों की भीड़। लेकिन काठगोदाम में, सुबहें दरवाज़े पर दस्तक नहीं देतीं; वो खिड़की से आती हल्की धूप और हवा की सरसराहट में दाख़िल होती हैं।कर्णिका का नया फ्लैट छोटा था, लेकिन उसमें एक खुली बालकनी थी—सीधा पहाड़ों की ओर। वहीं बैठी चाय के कप