17 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में सूरज धुंध के पीछे छिपा था, जैसे वह भी ऑगस्तो पिनोशे के आतंक से डर रहा हो। शहर की सड़कें अब लाशों और खून के धब्बों से सनी थीं। हर गली में सैनिकों के भारी बूटों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, और हर घर में सन्नाटा पसरा था—एक ऐसा सन्नाटा जो चीखों से ज्यादा खतरनाक था। ऑगस्तो अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक काला टेलीफोन रखा था, जो हर कुछ मिनटों में बजता था। हर कॉल एक नई मौत की खबर लाता था, और हर खबर के साथ ऑगस्तो