15 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में आसमान काला था, जैसे चिली का भविष्य उसमें डूब गया हो। नेशनल स्टेडियम की ऊँची दीवारों के पीछे चीखें गूँज रही थीं, जो शहर की खामोश गलियों तक पहुँचती थीं। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक पुराना रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण बार-बार दोहराया जा रहा था—“चिली अब सुरक्षित है। दुश्मनों का सफाया होगा।” उसकी उंगलियाँ रेडियो के बटन पर थिरक रही थीं, और उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी—वह न सिर्फ सत्ता का स्वामी था, बल्कि डर का देवता बन चुका था।