ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 4

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13 सितंबर 1973 को सैंटियागो में सूरज फिर निकला, पर उसकी गर्मी किसी को नहीं छू सकी। शहर अब एक खामोश कब्रगाह था। ऑगस्तो पिनोशे अपने कार्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर दुनिया भर के अखबारों की कटिंग्स बिछी थीं—"चिली में तख्तापलट," "अयेंदे की मौत," "सैन्य शासन की शुरुआत।" उसने एक अखबार उठाया और पढ़ा। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई—वह अब सिर्फ चिली का नहीं, दुनिया का हिस्सा बन चुका था। लेकिन यह मुस्कान खुशी की नहीं, बल्कि एक विजेता की थी, जो अपने दुश्मनों को कुचल चुका था।दुनिया की नजर अब ऑगस्तो पर थी। अमेरिका ने चुपचाप