मैंने लैफ्टिनेण्ट बोनापार्ट को एक नये सिद्धान्त को सीखकर घर लौटने वाला मात्र धर्मोपदेशक समझा है, जबकि वास्तव में वह स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व का विचार देने वाला अवतारी पुरुष था। वह आत्म-अनुशासित तथा स्वेच्छा से पर्वतारोहण जैसे कठिन कार्यों को निभाने वाला ऐसा पुरुष था, जो दुर्भाग्यवश चर्च और कुलीनता के नाम पर जनता पर शासन करने वाले दमनकारी द्वारा बीस वर्षों तक कुचला जाता रहा। यदि राज्य की कृपा से सुखभोगी पद संभालने वाला व कल का युवक और आज का सैन्य अधिकारी ऐसे सुख को त्याग देता है, तो इससे उसके महत्त्व में कौन-से चार चाद