अध्याय 1: पहचान की राखरात की कालिमा में एक तेज़ चीख हवा को चीरती है। कहीं दूर मंदिर की घंटियों और अज़ान के स्वर अब गोलियों और जलती हुई लकड़ियों की आवाज़ों में दब गए हैं। वो रात, जिसमें 'घर' शब्द का अर्थ राख में बदल गया। और वहीं खड़ी थी — आर्या। सोलह साल की एक मासूम लड़की, जिसके चेहरे पर माँ की ममता, पिता का गर्व, और भाई की शरारत अब केवल स्मृति बन चुकी थी।आर्या का परिवार एक मध्यमवर्गीय, पढ़ा-लिखा और शांतिप्रिय था। वे एक ऐसे गाँव में रहते थे जहाँ कई विचारधाराओं के लोग साथ रहते