सुबह की पहली रोशनीसुबह की हल्की सुनहरी किरणें खिड़की के पर्दों से छनकर कमरे में दस्तक दे रही थीं। समीरा की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। कुछ सेकंड तक वह छत की तरफ देखती रही, जैसे कोई सपना देखने के बाद हकीकत में लौटने की कोशिश कर रही हो।रात का हर लम्हा अब भी उसके ज़ेहन में ताज़ा था—सड़क पर दौड़ती स्पोर्ट्स बाइक, ठंडी हवा की छुअन, दानिश की वो शरारती मुस्कान, और फिर वो कागज़ का टुकड़ा…उसने करवट ली और तकिए के नीचे हाथ डाला। कागज़ अब भी वहीं था। उसने धीरे से उसे निकाला और खोलकर देखा। वही शब्द—"अगर कभी