ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 3

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11 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में सन्नाटा था, पर यह सन्नाटा शांति का नहीं, मौत का था। ऑगस्तो पिनोशे अपने नए मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक नक्शा बिछा था, जिस पर लाल निशान लगे थे—हर निशान एक दुश्मन का ठिकाना। उसकी उंगलियाँ नक्शे पर रेंग रही थीं, जैसे कोई शिकारी अपने अगले शिकार को चुन रहा हो। बाहर सड़कों पर सैनिकों की बूटों की आवाज गूँज रही थी। हर गली, हर घर में डर का काला साया मंडरा रहा था। ऑगस्तो ने अपनी वर्दी की आस्तीन ऊपर चढ़ाई और अपने कमांडर को बुलाया। "शुरू करो," उसने