कहानियाँ हैं दबीं हुई सीने के नीचे, हर दरार में बसी है एक अनकही रीत। ये धरती नहीं बस ज़मीन का टुकड़ा, ये है सदीयों से चलती अनकही दास्ताँ की प्रीत। "धरती की अनकही दास्तां" कविता कवि अभिषेक मिश्रा की एक गहरी संवेदना है, जो हमें हमारी धरती माँ की अनकही पीड़ा और उसकी अपार करुणा से रूबरू कराती है। इस कविता का उद्देश्य केवल प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करना नहीं है, बल्कि उस दर्द को सामने लाना है जो धरती हर दिन सहती है — पेड़ों की कटाई, नदियों की सूखावट, प्रदूषण और मानव के स्वार्थ के