MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 7

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Chapter 7 : जब आंखें बोलने लगीं   मुंबई का वही पुराना कैफ़े — हल्की-हल्की बारिश , खिड़की से आती हवा और कॉफी की खुशबू । पर इस बार सब कुछ अलग था।  दो महीने बाद आज फिर वही दो चेहरे आमने-सामने बैठे थे — आरव और काव्या । कोई ज़ोर की बात नहीं हुई , कोई नाटक नहीं। बस एक लंबा सन्नाटा और फिर एक हल्की मुस्कान । “ कैसी है ? ” आरव ने धीरे से पूछा । “ ठीक हूँ , लेकिन तेरी आवाज़ सुनकर और बेहतर हो गई । ” उस जवाब में जो अपनापन था,