प्रेम के दो अध्याय अध्याय- 1| भाग 1 जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे सामने चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था। अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा। “जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से