तू ही मेरी आशिकी - 8

  • 2k
  • 1
  • 864

अगली सुबह...कमरे की खिड़की से धूप की महीन लकीरें फर्श पर गिर रही थीं।चिड़ियों की आवाजें हल्के से कमरे में घुल रही थीं।छोटा अभी भी अपने तकिए में मुंह छिपाए सोया था,मगर मारिया —वो आज जल्दी उठ गई थी।आँखों में नींद की मिठास थी,मगर दिल में एक अजीब सी हलचल —बेहद नर्म, बेहद प्यारी।वो धीरे-धीरे आईने के सामने आकर खड़ी हो गई।थोड़ी देर तक खुद को देखती रही —जैसे खुद से पहली बार मुलाकात हो रही हो।हल्की सी मुस्कान उसके होठों पर आकर टिक गई —बेहद कोमल, बेहद अनकही।मारिया ने अलमारी खोली।साधारण कपड़े हटा कर एक हल्की गुलाबी कुर्ता निकाल