एक भूखे पेट की अमर वाणी, एक अनदेखे कवि की अमूल्य कहानी यह कविता उस भाव की पुकार है — जिसमें शब्द भले निर्धन हों, पर आत्मा से समृद्ध हों। "कविता उसके लिए नहीं, जो ताली दे — कविता उसके लिए है, जो रो उठे बिना आवाज़ दिए।" "कवि कंगाल कलम धनवान" कवि बैठा चुप कोने में, भीड़ करे उसे तिरस्कार, जिसने शब्दों से जिया, उसी को मिला धिक्कार। मंच मिला ना माइक को, ना मिला पुरस्कार, पर उसकी लेखनी लिख दे, युगों का संसार। धूप सहा, छाँव न देखी, गीत रचे दिन-रैन, पेट भरे ना