खोमोश थी मै

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खोमोश थी मै  जब ये एहसास हुआ था पहली बार डर सी गई थी मे जब खुद से भाग रही थी मे।  अनजान थी शायद या नहीं भी पर मेरी रूह मुजसे चिल्ला कर कह रही थी तू कुछ ओर है शायद । इस सामाजिक व्यवस्था से परे केसे हुई मै  । कहू भी तो केसे कहूं मेरे जेहन मै क्या छुपा है। बताऊं भी तो किस तरह ये सोच कर ही इतने खामोश सी हो जाते हू के खुदकी धड़कन सुनाए देने लगती है। बचपन याद आता है। तब सब सही लगता था पर आज हकीकत कुछ और निकली एक गुनेहगार सा