किसी ने क्या खूब कहा है कि जो आनंद अपनी छोटी पहचान बनाने में है वो किसी बड़े की परछाईं बनने में नहीं है | बेहतर होगा कि आप अपने जीवन में कर्तव्य परायणता और संघर्ष करना पिता और गुरु से सीखें , संस्कार मां से और शेष सब कुछ जाइसे जोड़ -घटाना, गुणा – भाग तो दुनियाँ ही सिखा देगी | मैंने इस कथन को शत -प्रतिशत अपने जीवन में उतरते और फलीभूत होते हुए देखा है| मुझे शायद इसीलिए अपनी छोटी पहचान से ही संतुष्ट होना पड़ रहा है | बड़े बड़े पुरस्कार और सम्मान मुझसे दूर हैं,