तेरी मेरी खामोशियां। - 10

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हफ़्ते कैसे बीते, उसे खुद नहीं पता चला…हर दिन जैसे एक साए की तरह गुज़रता गया।नायरा खामोश हो गई थी…हँसी अब भी थी, पर आँखों की रौशनी कहीं खो सी गई थी।उसकी और अमन की वो आख़िरी मुलाक़ात...हर रोज़ उसके जहन में दस्तक देती थी।वो पल…वो ठहरी हुई निगाहें…वो चुपचाप लौटता हुआ साया…कुछ तो था उस खामोशी में, जो अब उसके अंदर घर कर गया था।इन चंद मुलाक़ातों ने उसके दिल में एक अजीब सी हलचल पैदा कर दी थी।एक बेनाम एहसास,एक अलफाज़ों से परे जुड़ाव…और अब... वो यकीन में बदलता जा रहा था।जैसे किसी अनजाने रिश्ते में उसकी रूह