रात के 3 बजे।क्लब की रौशनी अब बुझ चुकी थी —सिर्फ दीवारों पर फैली हल्की पीली रोशनी अब भी थकी-सी टिकी थी।मारिया जब क्लब के रूम में पहुँची, तो थकी हुई थी —शायद थोड़ा उलझी भी।डांस, मीर की नज़रें, हादी की बाँहें,सब कुछ अब एक उलझी लड़ी जैसा लग रहा था।जैसे ही उसने कपड़े बदले —उसका मन अचानक चौक गया।पीठ पीछे कुछ था —न कोई आवाज़, न कोई आहट,बस एक ठंडी सांस का एहसास… जैसे कोई पास खड़ा हो।उसने झटके से पीछे देखा —कोई नहीं।फिर, जैसे ही वो दरवाज़े की ओर बढ़ी,दरवाज़ा 'ठाक' से बंद हो गया।"कौन है?"उसकी आवाज़ काँप