तू ही मेरी आशिकी - 4

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दरगाह से लौटते हुए...मारिया की रूह अब भी उस दरगाह की मिट्टी में अटकी थी। शहर की सड़कों पर गाड़ियों के हॉर्न, चेहरों की भीड़ और विज्ञापनों की चमक सब कुछ उस पर से फिसल रहा था — जैसे वो किसी और समय में चल रही हो। हवा उसके बालों में उलझती रही, और दिल में कुछ खुलता रहा, धीरे-धीरे।क्लब के बैकस्टेज पर...हवा यहाँ भारी थी — परफ्यूम, पसीने और एक्साइटमेंट से भरी हुई। साउंड चेक हो रहा था, स्पॉटलाइट्स की एंगल्स बदली जा रही थीं, किसी के हेडसेट में कमांड्स गूंज रहे थे।“मारिया!”जावेद भाई की आवाज़ आई — तेज़,