तू ही मेरी आशिकी - 1

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शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर...उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान खड़ा था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं।सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में।“तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना...अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...”संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई—"अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या