रात का वक्त था...नायरा घर लौटी तो हर चीज़ पहले जैसी थी—दीवारें, लोग, बातें... मगर उसके अंदर कुछ टूट चुका था। कमरे में दाख़िल होते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे किसी उम्मीद की तलाश में हो… लेकिन नहीं, वहाँ कोई आवाज़ नहीं थी—ना उसकी अपनी, ना किसी और की।कमरे का दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई। वो अब भी उसी छाया में उलझी हुई थी—अमन और उस लड़की की मुस्कुराती तस्वीर उसकी आंखों में जैसे चुभ रही थी।“क्यों खलता है मुझे?”उसने खुद से सवाल किया।"मुझे क्या फर्क पड़ता है... मैं तो उसे जानती भी नहीं..."लेकिन