दोपहर ढल चुकी थी।कॉलेज से लौटते हुए नायरा की चाल कुछ और धीमी थी आज। दिल में उलझन थी… और निगाहें हर मोड़ पर कुछ ढूंढती-सी।बस स्टॉप आज भी वैसा ही था,पर उस रोज़ की तरह हवा नहीं चली,ना ही दुपट्टा किसी की तरफ उड़ा,और ना ही वो आँखें…जिन्हें देखे हुए अब दो दिन बीत चुके थे।अमन…आज नहीं आया था।नायरा की आँखें एक बार फिर उसी कोने को देखने लगीं, जहाँ उस रोज़ उसकी नज़रें ठहरी थीं।पर आज उस कोने में सिर्फ़ सूनापन था।वो चुपचाप बस में चढ़ गई।भीड़ थी, शोर था, पर उसका मन हर आवाज़ से कटा-कटा सा