अध्याय 1 - अजीब मिशनयह रहा अफ्रीका मिशन का मेहनताना।" बूढ़े गुरु वशिष्ठ जी ने एक पुराने, फटे हुए कपड़े में लिपटा छोटा सा पार्सल निकाला। बड़ी सावधानी से उन्होंने उसमें से दो मुड़े-तुड़े सौ-सौ के नोट निकाले और सामने खड़े लड़के के हाथ में थमा दिए।लड़के का नाम था अर्जुन। उसका चेहरा हैरानी और क्रोध से भरा हुआ था।"क्या ये मज़ाक है?" अर्जुन मन ही मन बड़बड़ाया। "इतना ख़तरनाक मिशन था, मरने-मारने की नौबत आ गई थी, और मेहनताना सिर्फ दो सौ रुपये? ये कैसा इंसाफ है?"हर बार उसके गुरु वशिष्ठ जी उसे ऐसे मिशन पर भेजते थे जिनकी