स्थान: शिवधाम गुरुकुल – सप्तप्रांगण, यज्ञशाला का निर्माणस्थलसमय: आरव के आगमन के तीसरे सप्ताह की प्रातःशिवधाम की पूर्व दिशा में, जहाँ सात महाप्रांगणों में से सप्तप्रांगण स्थित था, वहीं अगले सप्तदिवसीय यज्ञ हेतु निर्माण कार्य आरंभ हो चुका था। यह स्थान, जहाँ पहले केवल वृद्ध साधक ही साधना के लिए आते थे, अब एक आयोजन का केंद्र बनने जा रहा था।शांत आकाश के नीचे पत्थरों को तराशते यंत्राधारी शिल्पी, मंत्रों का उच्चारण करते ऋषिपुत्र, और उस समूचे आयोजन के बीच में खड़ा — आरव वर्धन।उसकी आँखें इस समस्त व्यवस्था को इस प्रकार देख रही थीं, जैसे वह केवल एक किशोर