अध्याय 2: भूतकाल की परछाइयाँ(स्थान: शिवधाम गुरुकुल – मध्य रात्रि)रात्रि के गहन मौन में जब सब सो रहे थे, तब भी एक आत्मा जाग रही थी। शिवधाम गुरुकुल की पश्चिम दिशा में स्थित छोटा ध्यान-कक्ष, जिसमें शायद ही कोई जाता था, आज विशेष कंपन से भरा था।आरव वर्धन, अपनी चटाई पर पद्मासन में बैठा था। उसकी पलकों के नीचे चैतन्य था, और ह्रदय में एक तूफान।“मैं वापस आ चुका हूँ… पर यह संसार अब वैसा नहीं रहा।”पाँच हज़ार वर्षों का बोझ उसकी चेतना में कहीं शांत पड़ा था, लेकिन हर नाड़ी में वह इतिहास साँस ले रहा था।उसे सब याद