गुज़रे दिनों की परछाईंकमरे में केवल बिरयानी की खुशबू नहीं थी, बल्कि एक अनकही कहानी की आहट भी थी। संजना चुपचाप हर्षवर्धन को देख रही थी। वह इतने इत्मीनान से खाना बना रहा था, जैसे यह उसके लिए कोई नई बात न हो। लेकिन संजना जानती थी कि यह सामान्य नहीं था।उसने धीरे से पूछा, "तुमने खाना बनाना कब सीखा?"हर्षवर्धन ने मटन में दही मिलाया और कुछ देर तक उसे अच्छे से चलाने के बाद जवाब दिया, "बहुत पहले। जब ज़रूरत थी।"संजना को उसके जवाब अधूरे लग रहे थे। वह जानती थी कि अगर वह ज्यादा ज़ोर डालेगी, तो हर्षवर्धन