अगली सुबह…रात की बेचैनी नायरा की आँखों से होकर सीधे सुबह में उतर आई थी।आलमारी में कपड़े बदलते वक़्त भी, वही तस्वीर उसकी आँखों के सामने घूम रही थी—जो उसने देखी नहीं थी…मगर महसूस ज़रूर कर रही थी।नाश्ते की मेज़ पर सब कुछ रखा था—पर नायरा की कुर्सी ख़ाली रही।अब्बू ने अख़बार की ओट से झाँक कर देखा,फिर दादी ने भी रसोई की तरफ निगाह डाली,मगर नायरा पहले ही कॉलेज के लिए निकल चुकी थी—बिना एक शब्द बोले।बस स्टॉपहवा में हल्की सी ठंडक थी।पत्ते धीरे-धीरे सरकते हुए ज़मीन पर गिर रहे थे,जैसे कोई पुरानी याद दिल से उतर कर पलकों