शाम ढलने लगी थी…सूरज की आख़िरी किरणें जैसे शहर की सड़कों को हल्की सुनहरी चादर में लपेटे जा रही थीं।नायरा कॉलेज से लौट रही थी।आज वो अपनी ही सोचों में उलझी हुई थी—निम्मी से की गई बातों की गूंज अब भी दिल के किसी कोने में चल रही थी।वो बेस्टॉप तक पहुँची ही थी, जब उसके क़दम ठिठक गए।वहीं सामने… वो खड़ा था।वही सुकून भरा चेहरा, वही शांत आँखें, और वही खामोशी जो शोर से कहीं ज़्यादा असर रखती थी।अमन।वो बस के इंतज़ार में नहीं था… बस यूँही खड़ा था।शायद किसी का इंतज़ार… या शायद बस वक़्त के साथ खड़ा।नायरा