नायरा का कमरा।कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था।केवल खिड़की से आती चाँदनी एक कोना रोशन कर रही थी… और उस रौशनी में नायरा बैठी थी—गुमसुम, बेआवाज़।उसके आंसू—कभी बहते थे, कभी पलकों में ठहर जाते थे।जैसे हर आँसू एक सवाल हो…जिसका कोई जवाब उसे दुनिया में कहीं नहीं मिलता।दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई…फिर बिन इजाज़त के, एक जानी-पहचानी ख़ुशबू कमरे में दाख़िल हुई।"नायरा..."उसकी अम्मी, जिनसे ख़ून का रिश्ता तो नहीं था… मगर ममता का हर कतरा उनके लहजे में था।नायरा ने पीठ मोड़ ली।"अगर आप समझाने आई है, तो रहने दीजिए। सबको बस मेरी शादी ही क्यों नज़र आती है?"उसकी आवाज़