रात का वक़्त था…गली में लाइटें मद्धम थीं, और चाँद आसमान में अकेला खड़ा था —जैसे किसी इंतज़ार में हो।नायरा हल्के-हल्के क़दमों से अपने घर की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी।दिन भर का थकान उसके चेहरे पर था, मगर आँखों में वही शरारती चमक कायम थी।तभी दरवाज़े पर हलचल हुई—सुल्ताना ख़ाला, अपने इत्र की महक के साथ बाहर निकल रही थीं।बड़ी ही मुस्कराती हुई, लहजे में मिठास और चाल में जल्दबाज़ी।"अरे नायरा बिटिया!" उन्होंने नायरा को देखा और दोनों हाथ दुआ के लिए उठाए—"क़सम उस खुदा की, आज तो तुम्हारी शक्ल देख के लग रहा है जैसे चाँद ज़मीन पर उतर