धीरे-धीरे आश्रम मुझे अपना सा लगने लगा था।इतने सालों से जो सुकून में अपने घर में ना पा सका वो ख़ुशी वो अपनापन यहा मिल गया था और इन सब की वजह कहीं ना कहीं वृष्टि है l वृष्टि,, मेरी खोई हुई ख़ुशी बनकर मेरी जिंदगी में आई,लेकिन वृष्टि के दादू को शायद मेरा उसके यूं करीब आना पसंद नहीं आया था l एक अजीब सी बैचेनी उनके चेहरे पर मुझे महसूस होती थी | आख़िर एक दीन उनहोने मुझे शाम के खाने पर आमंत्रित किया l