Chapter 5 : जब इकरार से डर लगे, मगर इनकार मुमकिन न हो मुंबई की गलियों में अब सर्दी की हल्की दस्तक होने लगी थी। हवा में ठंडक तो थी, लेकिन आरव और काव्या के बीच एक नई सी गर्मी थी — एहसासों की, उम्मीदों की। आरव अब पहले से ज़्यादा मुस्कुराने लगा था। उसकी कहानियाँ अब सिर्फ डायरी तक सीमित नहीं थीं, वो काव्या की मुस्कान में भी झलकने लगी थीं। वहीं काव्या, जो कैमरे के सामने भी अपना असली चेहरा नहीं दिखाती थी, अब आरव के सामने बेझिझक हँसने लगी थी। एक दिन, आरव ने उसे एक