दरवाजे पर आई खबर

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प्रथम भाग: एक शांत शाम का अंत सर्दियों की वह रात कुछ अलग थी। शहर के पुराने मोहल्ले में स्थित श्रीधर बाबू का मकान, जो कभी हँसी-खुशी से गूंजता था, आज सन्नाटे में डूबा हुआ था। घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे ग्यारह की ओर बढ़ रही थीं, और बाहर का कोहरा खिड़कियों के शीशों पर धुंध की परतें जमा रहा था। श्रीधर बाबू, जिनकी उम्र अब सत्तर के पार थी, अपनी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठे थे। कमरे में टिमटिमाती लालटेन की रोशनी में वे अपनी प्रिय किताब "जीवन के अनसुलझे रहस्य" पढ़ रहे थे। उनकी आँखों पर चश्मा था,