लापता खूनी

रात का सन्नाटा ऐसा था कि मानो पूरा शहर अपनी साँसें रोककर किसी भयानक अनहोनी का इंतज़ार कर रहा हो। ऑफिस की चारदीवारी में हल्की-हल्की ठंडक घुली हुई थी, और बाहर का अंधेरा खिड़कियों से झाँक रहा था। आसमान में बादल इतने घने थे कि चाँद की एक भी किरण नीचे तक नहीं पहुँच पा रही थी। सड़कों पर सिर्फ हवा की सरसराहट थी एक ऐसी खामोशी जो कानों में सुई की तरह चुभ रही थी, जैसे कोई अनदेखा खतरा चारों ओर मंडरा रहा हो। नेहा अपने ऑफिस में अकेली थी, उसकी कुर्सी पर बैठी, मेज पर बिखरी फाइलों के