सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 4

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यथार्थ चिंतन भाग 4   कृपया yatharth chintan ग्रुप से जुड़े व्हाट्सएप 9424051923   जेकृष्णमूर्ति के मौलिक विचारों कौ अपनी खोज बताकर अनेक आचार्यों, गुरूओं ने लच्छेदार भाषण की कलाबाजी से सम्मोहित लोगो को खूब भृमित किया व खूब पैसा, पृसिद्धी व पृचार कमाया वहीं कृष्णमूर्ति ने अपार पैसा पृसिद्धी, अवतार पद सबकुछ त्याग दिया किंतु कच्चे दिमाग के लोग पृसिद्धी, ढोंग व भाषणकला से बहुत पृभावित होते हैं। जबकि अध्यात्म मे भाषण, शब्द कला की कोई जगह नहीं है । अनेक पूर्णसिद्धी प्राप्त संत मौन रहते हैं, रमण महर्षि की दीक्षा ही मौन थी । रूढ़िवादिता व पुरानी मान्यताओं