काठगोदाम की गर्मियाँ - 1

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अध्याय 1 मैग्गी प्वाइंट्स की शाम शा  म के कोई सात बजने वाले थे। जून का महीना था, लेकिन पहाड़ों में गर्मियाँ कुछ और ही होती हैं — न ज्यादा तेज़, न ज्यादा ठंडी — बस हल्की-हल्की हवा जो हर थकावट को चुपचाप चुरा ले जाए।   कनिका ने अपना दुपट्टा कंधे पर ठीक किया और बाइक से उतरते हुए सचिन से कहा, “यह जगह ना… कुछ अलग है। पहली बार आई हूँ लेकिन अजीब सुकून है।”   सचिन हँसा, “काठगोदाम की हवा में जादू है, धीरे-धीरे असर करती है।”   दोनों मैग्गी प्वाइंट्स पर पहुँचे थे — एक छोटा-सा