अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी और प्रवासी (व्यंग्य रचना)

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____________________________ अजब बात लगती है मुझे भारत में कि सब अंतरराष्ट्रीय सेमिनार करवा अच्छे अंक की जुगाड में हैं। इस हेतु कोई भी विदेश पलट पकड़ लाते हैं। भले ही वह वहां रेस्टोरेंट, टैक्सी या बुक कीपिंग आदि करता हो। घरेलू भारतीय स्त्री तो बहुत अधिक लेखिका बन रही यहां भी और वहां भी, जिसे कोई होनहार इंजीनियर युवा विवाह कर विदेश ले गया। मोटे दहेज को यहां भारत में माता पिता का सूद भरने छोड़कर। बस प्रवासी भारतीय चाहिए और सेमिनार हो गई अंतराष्ट्रीय। भले ही वह खुद घबरा रहा हो कि क्या बोलना है? विषय तो मुझे ही