दिलों के अधूरे रास्ते

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2015 की सर्दियां थीं, जब चंडीगढ़ की हल्की धुंध और ठंडी हवाएं हर किसी को अपनी आगोश में ले रही थीं। सुखना लेक के किनारे पेड़ों की पत्तियां हवा में हल्के-हल्के नाच रही थीं, और दूर से किसी कॉफी शॉप की खुशबू हवा में तैर रही थी। कुल्लू की वादियों में, ब्यास नदी के किनारे, सुबह की पहली किरणें पत्तों पर ओस की बूंदों को चमका रही थीं। इन दो अलग-अलग शहरों में, चार जवान दिल अपनी-अपनी जिंदगी की राहों पर चल रहे थे, अनजान कि उनकी कहानियां एक दिन सच्चे प्यार की ऐसी दास्तान बनेंगी, जो उनके दिलों को