एक अजीब सी खामोशी छा गई थी उस घर में। सबकुछ होते हुए भी सब कुछ अधूरा लग रहा था। रणविजय की आंखों के नीचे काले घेरे, उसके चेहरे पर गहराई से उतरा थकान, और उस खामोश चेहरे के पीछे छिपा तूफान—सब कुछ चीख-चीख कर कह रहा था कि वो अब टूट चुका है।मीरा अब उससे दूर हो चुकी थी। वो सच्चाई जान चुकी थी जिससे रणविजय उसे हमेशा दूर रखना चाहता था। अब वो उसका वो रूप देख चुकी थी, जो शायद रणविजय खुद भी अपने आईने में नहीं देखना चाहता था।इन्हीं उलझनों और खामोशियों के बीच एक दिन